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Tuesday, September 23, 2008

क्या मै महफूज हूँ ?????...

बम ब्लास्ट की ख़बर को तवज्जो देना हम पत्रकारों का फर्ज होता है .....लेकिन जब आम आदमी की सोचते है तो लगता है की अभी बहुत कुछ बाकी है..कही कोशी तो कही सिंगुर या कुछ और ??? .....पहले तो नही लेकिन अब जब भी घर से निकालता हूँ ...तो मन में एक अनजाना सा डर बना रहता है की कही ब्लास्ट न हो जाए ...बस में मेट्रो में या फ़िर कही भी हर उस शक्श को संदेह की नजरो से देखता हूँ जिसके हाथ में कोई बैग होता है ...... लगातार हो रही आतंकवादी गतिविधियों से हर आदमी अपने आप को डरा हुआ महसूस कर रहा है ..लेकिन लोगो कि दिनचर्या वैसे ही चल रही है जैसे पहले चल रही थी ...क्योंकि हम भारतीय है ,,,हमें कोई डिगा नही सकता ........लेकिन आम आदमी के लिए बदला है तो मन में एक डर .....
दोस्तों मै जिंदगी में कभी भी किसी से नही डरा हूँ ..... लेकिन किसी ब्लास्ट का शिकार हो के बे मौत नही मरना चाहता हूँ .... भगवान से यही दुआ है कि अगर कभी जान जाए तो देश की सेवा करते हुए जाए बस........
क्या खुफिया एजंसी इतनी निकम्मी हो गई है कि आम आदमी घर से निकलने के बाद वापस घर पहुच पाए ??????क्या ये मुमकिन है ????

Saturday, September 20, 2008

जांबाजी कही बिकती नही .......

जोश, जज्बा और देशभक्ति कही से खरीदी नही जाती .....ये पैदा होती है अपने देश की मिटटी के जुडाव से .....ये पैदा होतो है अपने परिवार के संस्कारो से ......
दिल्ली पुलिस के जांबाज पुलिस इंस्पेक्टर शहीद मोहन चंद शर्मा को शत - शत नमन....
जनवरी २००८ को राष्ट्रपति द्वारा मैडल लेते समय देखने वालो में कोई यह नही सोचा होगा की यह उनके लिए आखिरी मैडल होगा ....लेकिन आज यह सही है .....
कारगिल हो या फ़िर कोई और जंग या कोई पुलिसिया मुठभेड़ हर जगह ये आतंकवादी या क्रिमिनल मरते है तो अखबार , न्यूज़ चैनल अपनी भड़ास निकालने पहुच जाते है ...स्टोरी बानाने का सिलसिला चल पड़ता है .....लोग भीड़ बढाते है नारे बाजी करते है ..स्थानीय भी राजनीतिक रोटी सेकने पहुच जाते है .....
आज एक पुलिस का जवान शहीद हुआ है ....खबरों में इनकी शहादत को तव्वजो दी गई है लेकिन शायद इससे ज्यादा तव्वजो दी गई है उस ख़बर को जो मुठभेड़ से जुदा था ...हर पत्रकार बंधू अपने अखबार या चैनल के लिए सबसे पहले ब्रेकिंग करना चाहता था ....शायद नौकरी के लिए यह जरुरी भी था........
निवेदन है इन पत्रकार भाइयो से की इस जांबाज इंस्पेक्टर के परिवार की स्थिति के बारे में भी कुछ दिखाए ....

Friday, September 19, 2008

आतंकवाद में समाज की भूमिका ......

ब्लास्ट होता है लोग मरते है फ़िर स्थिति सामान्य होती है ...समय के साथ लोगो की दिनचर्या भी सामान्य हो जाती है......कुछ लोगो को पुरस्कार मिलता है तो कुछ लोगो को मुवावजा ...क्या इसके पीछे कोई यह सोचता है कि उन लोगो का क्या होता है जो इसके शिकार होते है ......क्या इन सब के बाद सुरक्षा व्यवस्था सुधर जाती है ? नही वही ढाक के तीन पात वाली स्थिति चलती है .....आख़िर पुलिस क्या - क्या करे किस -किस को खंगाले .....जब भी कोई इनकाउंटर होता है तो कुछ समाज के ठेकेदार या फ़िर कहा जाय कि ये सामाजिक लोग ये जरुर कहते फिरेंगे कि ये इनकाउंटर पूर्व नियोजित था .....या कुछ मानवाधिकारी बंधू कूद के आ जायेंगे कहेंगे कि यह मानवाधिकार के खिलाफ है .......आख़िर में हम ये सवाल करते है कि ये सामाजिक लोग और मानवाधिकारी लोग उस समय कहा जाते है जब ब्लास्ट होता है ? पुलिस तो जो भी कर रही है कही न कही से जनता कि और देश की भलाई ही कर रही है .....अभी हाल में एक फ़िल्म आई थी वेडनेसडे जिसमे नसरुद्दीन शाह ने एक आम आदमी कि भूमिका निभाई थी ....वो आम आदमी मुंबई ब्लास्ट से परेशान था .....उसने आतंकवादियों के खिलाफ वो कदम उठाया जो आतंकवादी देश के खिलाफ उठाते है .....अगर आज देश का हर आम आदमी इस फ़िल्म के हीरो कि भूमिका निभाने लगे तो ......देश कि सुरक्षा एजंसियों का क्या होगा ?