Tuesday, November 10, 2009
शीला ये तूने क्या किया...
Thursday, November 5, 2009
चले गये दद्दा...
Tuesday, September 1, 2009
फुटबॉल का दर्द...
फुटबॉल एक ऐसा खेल जिसको पैर से खेला जाता है.... इसको लात से भी मारा जाता है..... शायद क्रिकेट के क्रेज से इसको हर कोई लात से ही मार रहा है। इस खेल में खिलाडी़ जितना भी फुटबॉल को लात मारता है खेल में उतना ही मजा आता है। लेकिन फेडरेशन और प्रशासन का उदासीन रवैया के चलते ये खेल आज हासिये पर है। फुटबॉल को लात पड़ रहा है आज के भ्रष्ट प्रशासन का..... साथ में फेडरेशन का जहां पर देखिये भ्रष्टाचार ही इस खेल पर हावी..... आखिरकार राजनीतिक हलके के लोग क्यों इन खेलो पर कुदृष्टि रखे है.....क्यों संसद के गलियारे में चिल्ल-पों करने वाले राजनेता खेल के मैदान पर अपनी हेकड़ी निकालते है....जवाब ये निकल के आता है फेडरेशन में आने वाले सरकारी पैसा इन राजनेताओं को अपनी ओर खींचता है। खैर इस फुटबॉल को जिसको भूटिया का नेतृत्व दूसरी बार सरताज बनाया है उसका हाल बेहाल हो गया है। प्रफुल्ल पटेल जो कि एक राजनेता है उनका नेतृत्व फेडरेशन में एक राजनेता से इतर कुछ भी नहीं है। भारत में यहीं नेहरू कप है जो १९९७ से २००७ तक हासिये पर था....खैर ओएनजीसी की मदद कहे या फिर सरकार का शिगूफा.....नेहरू कप फिर से शुरू हुआ....और भूटिया ने दूसरी बार सीरिया को हरा कर कप पर कब्जा किया.....भारत में राजनीति हर गली और कुचे में देखी और समझी जा सकती है। उसका परिणाम खेल के मैदान में भी देखने को मिलता है..... किसी भी फेडरेशन की बात करे तो हर जगह इन राजनेताओं की एक अच्छी खासी जमात देखने को मिल जायेगी....लेकिन भारतीय फुटबॉल टीम की दूसरी जीत को देख के लगता है कि इसको एक संजीवनी की जरूरत है।
आपकाविवेक
Thursday, July 23, 2009
भारत में भारतीय खेलों की उपेक्षा....
खैर आज वक्त मिला तो सोचा कि कुछ लिख ही दूं। आज बुलेटिन दे रहा था तो एक खबर आई कि ... हॉकी खिलाड़ियों की उपेक्षा की गई। हॉकी खिलाड़ियों के साथ इस तरीके का दुर्व्यवहार स्पोर्ट्स एथारिटी के ओर से किया गया। दरअसल पूरा मामला ये है कि भारतीय महिला और पुरूष टीम पुणे से दिल्ली आ रहे थे, जिनको लेने के लिये भारतीय खेल प्राधिकरण खिलाड़ियो के लिये होटल में बस नहीं भेजा.. वो खिलाड़ी लोग अपने द्वारा किये गये साधन से होटल से गतंव्य स्थान तक पहुंचे। खैर ये कोई नया मामला नहीं है जब इस तरह से भारतीय हॉकी खिलाड़ियो के साथ बदसलूकी की गयी हो। यहां पर सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात ये है कि हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल है। जब राष्ट्रीय खेल के साथ ऐसा किया जा सकता है तो किसी भी खेल के साथ ऐसा हो सकता है...भारत में तीरंदाजी हो..कबड्डी हो या फिर कोई भी खेल....जिनका विश्व पटल पर महत्व होता है..इन खेलों के साथ हमेशा से नाइंसाफी ही हुई है...क्रिकेट के इस देश में कभी हॉकी का वर्चस्व होता था...जमाना बदला लोग बदले बदल गया खेल का स्वाद..जहां भारत के गांवो में हॉकी बांस के डंडे से खेला जाता था..आज उसकी जगह लकड़ी का बल्ला ले लिया है..इस मामले पर चिंतित होना लाजिमी है...क्योंकि आने वाले ओलंपिक में स्वर्ण...कांस्य ..रजत जैसे पदक इन्ही खेलो से मिलते है... चीन ...अमेरिका..जापान जैसे देश अपने यहां इस तरीके के खेलों पर पूरा ध्यान देते है...जिससे कभी भी ओलंपिक में उन देशों का स्थान सोना और चांदी लाने में नंबर एक पर होता है।
आपका
विवेक
Friday, July 3, 2009
हमारी बिहार यात्रा.....
वैसे हमारी बिहार यात्रा एक बार हो चुकी है....ये हमारी दूसरी यात्रा थी। हमारे ही सहयोगी नवीन की शादी में पटना जाने का सौभाग्य मिला... सोचा बहुत था कि पटना कैसा होगा? क्योंकि पटना के बारे में मन में बहुत कुछ भ्रांतियां थी। मेरी समझ में आ रहा था कि पटना शहर कैसा होगा... लेकिन मेरी समझ उसी समय काफूर हो गयी जब मैं स्टेशन पर पहुंचा ... इतनी साफ-सफाई कि फर्स आईना का काम कर जाये...सलीके वाले लोग... लगा कि लखनऊ या इलाहाबाद के स्टेशन पर हूं।
शुरूआत करते है अपनी यात्रा से,,, मेरे साथ में हमारे मुंहबोले बड़े भाई संजीव सिंह और प्रशांत सिंह थे... साथ में दूरदर्शन के माननीय पत्रकार अतुल मिश्रा जी थे... अतुल जी थोड़ा बड़बोले किस्म के पत्रकार है। जिंदगी के बारिकीयों को नजदीक से देखते है लेकिन समय की पांबदी से कोई वास्ता नही है अतुल जी का... हां साथ में दो बड़े भाई हो तो क्या कहने... प्रशांत भैया और संजीव भैया से जिंदगी की बारिकीयों को नजदीक से सीखने का मौका मिला है। स्टेशन पर सबसे पहले संजीव भैया पहुंचे थे....फिर मैं...फिर प्रशांत भैया और अंत में माननीय अतुल......
खैर ट्रेन चल चुकी और शुरू हो गया मस्ती का दौर... इतने दिन बाद हम लोग एक साथ मिले थे तो मस्ती लाजिमी थी। गप शप के दौर में समय का पता ही नहीं चला फिर प्रशांत भैया के घर से डिनर आया था... छक के भोजन किया गया... मजा आ गया था। ट्रेन में मस्ती का दौर भी खूब चला॥ रास्ते में बिहार दर्शन.... खेत खलिहान... धान की रोपाई के लिये तैयार हो रहे खेत.... नदी... नाले... नहर सब कुछ था रास्ते में .... भाई दिल्ली में कहा देखने को मिलता है ये सब.... ढंग से आसमान भी नही दिखता दिल्ली में.....
लालू के समय में एक बार सोनपुर गया था ... दोस्त की बहन की शादी थी... करीब दस साल पहले... हालांकि पटना यात्रा में खूब मजा आया ... पटना शहर की खूबसूरती मन को मोह ली.... भाई दिल्ली कभी अपनी-अपनी नहीं लगी... लेकिन पटना से तो जैसे प्यार हो गया... सलीके वाले लोग.... टैक्सी वाला... होटल वाला.... सब कोई सलीके वाले..... खैर नीतीश सरकार द्वारा बनाये गये फ्लाई ओवर और ढंग के सड़क सब कुछ बढ़िया था......
दोस्तों दूबारा मौका लगेगा तो पटना जरूर जाऊंगा.....
आपका
विवेक
Monday, May 25, 2009
जीत गया डेक्कन......
Saturday, May 23, 2009
आईपीएल में मेरी भूमिका.....
आपका
विवेक
Friday, April 10, 2009
जुते का साइड इफेक्ट...
कभी समाज में गाली खाने वाला जूता अब राजनीतिक हलके का एक सम्माननीय परिचय हो गया है। समाज में जुते का सम्मान इस कदर बढ़ गया है कि जहां देखो लोग जुता पर जुता दिये जा रहे है। कहीं बुश जुता खा रहे है तो कही चिदंबरम.....अब सिलसिला नवीन जिंदल तक पहुंच गया है। समाज में लोग को गाली देते हुये आप बहुत सुने होगें कि ....अब बोलोगे तो जूते से मारूगां ..... कितना हेय दृष्टि से लोग जूते को देखते थे। अब जूते का रूतबा बढ़ गया है। अब जूते से मार खाने वाले की पब्लिसिटी बढ़ रही है साथ में मारने वाले को एक वर्ग विशेष में अच्छा खासा इज्जत....
दो जूते आपस में बात कर रहे थे कि ....
(पहला जूता यार अब तो हमे इज्जत मिल रही है....कहीं ये नेता लोगो की चाल तो नहीं है?
दूसरा जूता हां यार सही कह रहे हो....ये नेता लोगो की कोई चाल हो सकती है....क्योंकि एक मारता है तो उसको लोग टिकट देने की बात करते है .... तो दूसरी तरफ एक का टिकट कट जाता है....ये नेता लोग अब हमारी कौम में भी दखल देने लगे है......)
दोस्तों अब चलते - चलते ये बात स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि अब जूते का वैल्यू बढ़ गया है ..... चप्पल पहनना छोड़ दीजिये ॥ हो सकता है कही जूता आपको टिकट ना दिलवा दे....लोकसभा चुनाव सिर पर है......।
Friday, March 20, 2009
चुनाव और हम.........
Wednesday, January 14, 2009
पत्रकारिता पर शिकंजा ......
नही ।
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में संवैधानिक रूप से ये अधिकार मिला हुआ है की हर कोई अपनी बात कह सकता है । अनुच्छेद १९ (1) इस बात का गवाह है कि भारत का हर एक नागरिक अपनी बात को बेखौफ होकर व्यक्त कर सकता है । लेकिन मुंबई हमलो के बाद प्रसारण मंत्रालय को लगा कि प्राइवेट न्यूज़ चैनल टी आर पी को लेकर कुछ ज्यादा ही दिखा रहे है । यहाँ हम ये भी बता देना चाहते है कि ख़ुद सरकारी मिडिया भी मुंबई हमले की कवरेज़ कर रही थी ।
कई मामलो में खबरिया चैनल बहुत ही बढ़िया है, जैसे एन एस जी के जवानो की जांबाजी को दिखाना या फ़िर हमलो की हर बारीक़ से बारीक़ जानकारिया दिखाना ।इसी बीच में आंतकवादी टीवी देख कर जवानो के हर कदम को जानने लगे तो यही न्यूज़ चैनल लाइव प्रसारण बंद कर दिए ।
चाहे कड़ी धुप हो या मुसलाधार बारिस हमारे पत्रकार बंधू कैमरे की नजर से सब कुछ हम लोगो के बीच पहुचाते है । हाँ ये सही है की बाजारवादी युग में टी आर पी के मायने थोड़ा बदल गए है फ़िर भी अभी जो स्थिति है वो सरकारी तंत्र से बहुत ही बढ़िया है ।
हालाँकि हमारे संपादक लोग इसका विरोध कर रहे है और प्रधानमंत्री जी से भी मिलकर इस बारे में बात करेंगे ....देखते है क्या होता है ।