हिन्दी पत्रकारिता के पितामह प्रभाष जोशी हमारे बीच में नहीं है..................
खबर सुनते ही लगा कि धरती डोलने लगी...भूकंप आ गया....ऐसा लगा कि हिन्दी पत्रकारिता अब खत्म हो गयी.....
इलाहाबाद से दिल्ली चला था तो एक इच्छा थी कि लेखनी के इस दद्दा से मिलू...अब ये इच्छा कभी पूरी नहीं होगी । क्रिकेट के प्रति उनकी दीवानगी का आलम ये था कि भारत का कोई मैच वो मिस नही करते थे। शायद ये दीवानगी ही उनको इस दुनिया से रुखसत कर गयी...जोशी जी सचिन के महान प्रशसंको में से एक थे। उनकी एक आर्टिकिल याद आ रही है..... जब सचिन नर्वस नाइन्टी के शिकार होते थे तब उन्होने एक लेख लिखा था....उसमें अपनी भावनाओ को पूरा उकेर कर लिख दिया था...उन्होनें लिखा था जब सचिन अस्सी या नब्बे के करीब पहुंचते थे तब मै अपनी टीवी बंद कर दिया करता था...शायद उनका शतक बन जाये...सचिन के प्रति उनकी अल्हड़ता इतनी थी कि वो ऐसे टोटका कर दिया करते थे....अगर वो आज होते तो सचिन के सत्रह हजार रन बनाने पर ऐसा आर्टिकिल लिखते कि मन बाग-बाग हो जाता। जोशी जी आज हमारे बीच नही है लेकिन उनकी लेखनी उनका आदर्श उनका कलम आंदोलन सब कुछ हमारे जेहन में अमर रहेगा। बाकी उनके बारे में और लिखने कि हिम्मत नहीं हो रही क्योंकि मन बहुत भावुक हो रहा है...
आपका
विवेक
4 comments:
बहुत उम्दा
दद्दा का जाना वाकई पत्रकारिता के लिए एक स्तंभ का गिरना हैं। लेकिन क्या कीजिएगा समय के आगे हर शख्स बौना ही साबित होता हैं।
बहुत उम्दा
दद्दा का जाना वाकई पत्रकारिता के लिए एक स्तंभ का गिरना हैं। लेकिन क्या कीजिएगा समय के आगे हर शख्स बौना ही साबित होता हैं।
धन्यवाद दिलीप जी.....
वाकई में दद्दा की भरपाई मुश्किल है पत्रकारिता के इस नश्वर संसार....
vivek bhai joshi sir ka jana is desh ki patarakarita ki jado ko hila kar rakh diya hai joshi sir ki kami ab puri nahi ho sakti yeh kahna sach hai
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