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Monday, April 19, 2010

जानलेवा मोहब्बत...



एकखबर पढ़ने में आई कि जितने लोगों की जान गरीबी और बेरोजगारी ने नहीं ली उससे ज्यादा मोहब्बत ने ली है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक ही दिन दो प्रेमी युगलों ने खुदकुशी कर ली। इनकी चिता की आग अभी बुझी भी नही थी कि ग्रेटर नोएडा में भी एक प्रेमी युगल ने सल्फास खाकर आत्महत्या कर ली। बताया गया कि इन लोगों ने पारिवारिक लोगों की नाराजगी और परेशानियों की वजह से खुदकुशी कर ली। तीन दिन में प्रेमी युगलों की खुदकुशी की ये तीसरी घटना है। यह हमारे सामाजिक ढांचे और व्यवस्था पर सवाल उटाती है । आखिर प्रेम करनेवालों को खुदकुशी क्यों करनी पड़ती है? क्या उन्हें यह दुनिया अपने प्रेम के लिए रास नहीं आती या दुनिया ही उनके प्रेम को बर्दास्त नहीं कर पाती? कहनेवाले तो कहते हैं कि यह दुनिया किसी शेषनाग के फन पर नहीं, प्रेम से चलती और संवरती है। प्रेम गली अति सांकरी तो हमेशा से ही रही है और यह कोई खाला का घर भी नहीं हैं। प्रेम को पाने के लिए शीश उतारें भूंई धरे की स्थिति से गुजरना पड़ता है या आग का दरिया पार करना पड़ता है। प्रेम का दुश्मन जमाना शुरू से ही रहा है। फिर भी प्रेम करने वाले हैं कि रोके नहीं रुकते, वे प्रेम करते हैं और दुनिया भर की तमाम दुश्वारियां झेलते हुए खुद को होम कर देते हैं। लेकिन आज के आधुनिक समय में भी जब प्रेम करनेवाले को अपनी जानदेनी पड़े तो यह हमारे समाज-व्यवस्था के लिए शर्म की बात है।
हमारा समाज अपनी सामंती मानसिकता के कारण इन प्रेमी युगलों के प्रेम को मान्यता नहीं देना चाहता है और इन्हें तरह-तरह से लांछित करना चाहता है।इनके राह में सौ रोड़े अटकाता है। समाज के बेगाने रवैये से प्रेमीजनों को लगता है कि यह दुनिया उनके रहने लायक नहीं रह गई है। शायद दूसरे लोक में ही उनका मिलन संभव है। इसलिए अक्सर ऐसी घटनाओं के बाद मिले सुसाइड नोट में यह लिखा मिलता है कि-साथ जी न सके लेकिन साथ मर तो सकते हैं- या दूसरी दुनिया में हम साथ-साथ रहेंगे, इसलिए यह दुनिया छोड़कर जा रहे हैं। इन प्रेमी युगलों को लगता है कि जिस दुनिया , जिस समाज और जिस परिवार में उनके प्यार की कोई कद्र नहीं उसमें क्यों जीना? और वे इस दुनिया के खिलाफ अपना प्रतिरोध दर्ज करने के लिए खुदकुशी का रास्ता अख्तियार कर लेते हैं।
आखिरप्रेम करनेवालों का दुश्मन जमाना क्यों रहा है? क्योंकि प्रेम सामाजिक रूढ़ियों और उसकी व्यवस्था को चुनौती देता है। दरअसल हमारे समाज में पारिवारिक ढांचा आज भी सामंती किस्म का है। परिवार अपने पुराने मूल्यों और पुरानी नैतिकताओं के मानदंड पर ही टिका रहता है। प्रेम और शादी के मामले में वो चाहता है कि सबकुछ उनके मन के मुताबिक हो। इस मामले में वो बच्चों को कोई छूट नहीं देना चाहता। अपने बच्चों के लिए दुनिया भर की नेमतें हासिल करने को उत्सुक माता-पिता प्रेम और विवाह के मामले में अपनी ही पसंद, अपनी ही जिद पर अड़े रहना चाहता है। खाप पंचायतों का फरमान इसका ज्वलंत उदाहरण है। खाप पंचायतों के फरमान के कारण न जाने कितने प्रेमी युगलों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। लेकिन आज के युवा इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं। वे दुनिया की तमाम हलचलों से पल-पल वाकिफ रहते हैं। सूचना क्रांति ने उन्हें न केवल अपने नागरिक जीवन के अधिकारों से अवगत कराया है बल्कि समाज की दकिनूसी परंपराओं से लड़ने का होसला भी दिया है। आज के युवा अपने अधिकारों के लिए सजग हैं और प्रेम या विवाह जैसे मसलों को अपना निजी मामला समझते हैं। इसमें वे किसी का हस्तक्षेप नहीं चाहते। उन्हें पता है कि प्रेम निजी मामला है और संविधान की धारा इक्कीस के तहत यह उनके जीने की स्वतंत्रता का अधिकार है। लेकिन माता-पिता अपने बच्चे के विवाह को अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़कर देखते हैं। वे अपने बच्चे को प्रेम के संक्रमण से बचाने के लिए साम-दाम, दंड-भेद जैसे तमाम हथकंडे अपनाते हैं।
यहांसवाल ये भी उठता है कि क्यों नहीं माता-पिता अपने बच्चों के मन की भावनाओं को समझ पाते हैं? इसके पीछे भी तथाकथित नाक के कटने की मानसिकता काम करती है। हमारे समाज में जाति, वर्ग और सामाजिक रुतबे को खतरनाक हद तक मान्यता मिली हुई है। लेकिन पश्चिमी देशों में ऐसा नहीं है। वहां व्यक्ति स्वातंत्र्य को तरजीह दी जाती है। सांवैधानिक रूप से समय के साथ हरेक समाज के मूल्यों में परिवर्तन होता रहता है। लेकिन हमारा समाज आज भी सदियों पुरानी नैतिकताओं और मूल्यों पर टिका हुआ है। अठारह वर्ष के युवा को सांवैधानिक रूप से आज देश का शासक चुनने का अधिकार प्राप्त है लेकिन यह विडबंना है कि हमारा समाज उसे अपने जीवन के फैसले लेने का अधिकार नहीं देना चाहता है। जब एक युवा अपने मन से देश के लिए योग्य नेता का चुनाव कर सकता है, अपने रोजगार और कैरियर का चुनाव कर सकता है तो अपने जीवन-साथी का चुनाव क्यों नहीं कर सकता? नहीं, दरअसल समाज के लिए मामला इन युवाओं के अधिकार को , उनके चुनाव की स्वतंत्रता को महत्व देने का नहीं है उन्हें अपनी तथाकथित नैतिकता और पुराने पड़ चुके मूल्यों की चिंता है। अपनी नाक बचाने की चिंता में वे बचपन के ही बच्चों के जीवन को कुंठित करने और अपने ढंग से आकार देने में लग जाते हैं और तरह-तरह के प्रतिबंध लगाते रहते हैं। लेकिन जहां बंदिशें ज्यादा रहती हैं वहीं प्रेम का बिरवा उगता है।
दूसराकारण हमारे समाज में स्त्री को, लड़कियों को वस्तु समझने का भी है। माता-पिता अपनी बेटियों को इज्जत समझते हैं और उसकी यौन शुचिता को लेकर चिंतित रहते हैं। यही कारण है कि वे उसे अपने मनपसंद युवक से ब्याह नहीं करने देना चाहते और दहेज देकर या बिना दहेज के दुहाजू वर के साथ जिंदगी भर के लिए बलात्कर भुगतने को अभिशप्त करते हैं। दुखद बात ये कि यह सब उस लड़की की भलाई के नाम पर किया जाता है।
जबतकहमारे समाज की मानसिकता में आधुनिक मूल्यों की प्रतिष्ठा नहीं होगी तब तक इस तरह के वारदात होते रहेंगे और प्रेमीजन अपनी जान कुर्बान करते रहेंगे।लेकिन यही इस मामले का सबसे दुखद पहलू है। जिन्हें इस समाज को जीने और प्रेम करने लायक बनाना चाहिए था वही इसे छोड़कर चले जाते हैं। यह सच है कि समाज उनके अधिकार की रक्षा नहीं करता लेकिन यह भी उतना ही सच है कि वे भी समा को सुंदर बनाने के अपने कर्तव्य से मुंह मोड़ जाते हैं। क्यों कि किसी भी समाज की बेहतरी की िम्मेदारी सबसे ज्यादा युवाओं के कंधों पर ही होती है। दुनिया की दुश्वारियों से हारकर खुदकुशी करने को किसी भी सूरत में सही नहीं ठहराया जा सकता है। आत्महत्या चाहे जिन परिस्थितियों में की गई हो उसे कायरता ही माना जाएगा। जरूरत है कि समाज अपनी मान्यताओं और नैतिकता के मानदंड को आधुनिक बनाए तथा युवा वर्ग भी अपने इस समाज के डर से भागें नहीं बल्कि इसे बदलने की कोशिश करें। इस समाज में रहकर ही प्रेमीजन समाज के पुराने मूल्यों और रूढ़ परंपराओं को चुनौती दे सकते हैं, इससे भागकर नहीं।


रमण कुमार सिंह


लेखक- एक पत्रकार, साहित्यकार और कवि है...अगर आप जुड़ना चाहते है तो...इनके मेल आईडी kumarramansingh@gmail.com पर संपर्क कर सकते है....

आईपीएल मतलब गड़बड़घोटाला...




नमस्कार दोस्तो..
पूरे डेढ़ महीने तक चला आईपीएल का सफर अब आईपीएल खत्म होने के कगार पर है...लेकिन इन दिनों के बीच सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात ये है कि आईपीएल में क्रिकेट से बढ़कर विवाद ज्यादा बिका...आखिरी समय में तो मोदी और थरूर की जंग नें तो आईपीएल का सारा काला चिट्ठा ही खोल के रख दिया...मोदी जहां सुनंदा नाम की सुंदरी का सहारा ले रहे थे॥वहीं थरूर साउथ अफ्रीकी मॉडल गैब्रिएला के दामन को पकड़े थे... हां एक बात जरूर देखने को मिली, कि मोदी के कार्यालय में आयकर विभाग का छापा पड़ा तो ढ़ेर सारे दस्तावेज मिले जो कि मोदी के विपरीत जाते है....कुछ लोगो के मुताबिक क्रिकेट...क्रिकेट नही रह गया है...क्रिकेट बन गया है जुआ.. जी हां सुनंदा पुष्कर जैसे लोग इस जुए में पैसा लगाती है जिसका फल उनको दुगुना होता है...इस पूरे प्रकरण के बाद शशि थरूर को अपना विदेश राज्य मंत्री पद की कुर्बानी देनी पड़ी..जबकि ललित मोदी पर गाज गिरनी बाकी है....



ललित मोदी के बारे में...
ललित मोदी को आईपीएल के तीनो सीजन को सफलता पूर्वक चलाने का खिताब जरूर मिलना चाहिये....क्योंकि ये वही ललित मोदी है जो पिछले साल सुरक्षा को लेके गृहमंत्री पी. चिदंबरम का विरोध करके इस क्रिकेट के जुए को साउथ अफ्रीका में सफलता पूर्वक खेलवाये....वाकई में मोदी जी आप बधाई के पात्र है..लेकिन अगर आपके पैसे पर गौर फरमायें तो निकल के आता है कि....इन तीन सालो में आपके पास हर वो नई चीजे दिखी है जो एक अरबपति के पास होना चाहिये...ए दिगर की बात है कि आप खुद रईसो के श्रेणी में आते है..आपके पास ढ़ेरों कंपनिया है..लेकिन इन तीन सालो में आपके गैरेज में BMW, मर्सिडीज और प्राईवेट प्लेन जरूर बढ़े है..भाई मोदी साहब हर साख पे उल्लू बैठा है...आप जो पैसा इंडियन प्रीमियर लीग में बना रहे थे....उस पर सरकार की नज़र 2009 से ही लगी हुई थी...अभी तो और खुलासे बाकी है..देखने वाली बात ये होगी कि जेन्टलमैन वाले खेल क्रिकेट को जुआ बनाने वाले ये मोदी जैसे लोगों के पर कब कतरे जायेंगें.....

आपका
विवेक मिश्रा