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Wednesday, September 21, 2011

रफ्तार का रोमांच-इंडियन ग्रांप्री


महज 36 दिनों के बाद हर भारतीय रेसर का सपना पूरा होने जा रहा है। ग्रेटर नोएडा के ग्रेटर नोएडा के बुद्धा इंटरनैशनल सर्किट में रफ्तार के रोमांच का मजा बड़े आराम से कई एक धनाड्य हिंदुस्तानी उठाते नजर आएंगे। करोड़ों - अरबों के वारे न्यारे हो रहे है, इंडियन ग्रांप्री के ट्रैक बनने में करीब 40 करोड़ डॉलर खर्च हुए है। शायद इतने पैसों से भारत के कुछ एक राज्यों के खाने-पीने की समस्या हल हो जाती। लेकिन इस खर्च के बाद जो निकल के आएगा वो वाकई में रोमांच से लबरेज होगा। भारत की तरफ से भाग लेने वाले नारायण कार्तिकेयन और करुण चंडोक से खासी उम्मीदें हैं, ये खिलाड़ी अब तक विदेशों में जाकर इस तरह के आयोजन में भाग लेते थे, पर अब इन्हे अपने घरेलू दर्शकों के बीच जोरआजमाईस करने का मौका मिलेगा। कार्तिकेयन और चंडोक के लिए अपने देश में रेसिंग करना एक सपने को हकीकत में बदलने जैसा है।
इंडियन ग्रांप्री में रफ्तार का आलम ये होगा कि इंडियन ग्रांप्री के ट्रैक पर रेसिंग कारे 320 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ेंगी। मुकाबला 28 से 30 अक्तूबर के बीच होना है, जिसमें 28 अक्तूबर को प्रैक्टिस मैच, 29 अक्तूबर को क्वालीफाईंग मैच उसके बाद 30 अक्तूबर को होगा फाइनल का संग्राम । टिकट की कीमतें भी खास रखी गई हैं जिसमें 2500 रुपए से लेकर 35 हजार तक है इसके साथ ही यहां पर बॉक्स की भी व्यवस्था की गई है जिसकी कीमत करीब 35 लाख से लेकर 1 करोड़ तक रखी गई है।
ग्रेटर नोएडा के बुद्धा इंटरनैशनल सर्किट अपने आप में खास रेसिंग ट्रैक है। दुनिया का सबसे शानदार रेसिंग ट्रैक बनाया गया है जिसमें दो स्पेशल कार्नर है । भारत के पहले इंटरनैशनल रेसिंग ट्रैक के डिजाइन की एक और जबर्दस्त खासियत है, इस ट्रैक पर ड्राइवर को सामने के टर्न के अलावा आने वाला अगला टर्न भी दिखाई देगा जिससे ड्राइवर को अपनी स्पीड बढ़ाने में मदद मिलेगी।
फार्मूला वन रेस के दौरान एक चीज और खास होने वाली है वो ये है कि इसमें शिरकत करने वाले हर व्यक्ति का चाहे वो ड्राइवर हो या फिर रेस में सहयोग करने वाले स्टाफ हो या फिर देखने वाले दर्शक, सभी का बीमा होगा।
खैर इंडियन ग्रांप्री से जो कुछ निकल के आएगा उससे तो किसी गरीब का भला तो होने से रहा, पर देश के नाम एशियाड,कॉमनवेल्थ के बाद एक और आयोजन कराने का तमगा जुड़ जाएगा। वैसे कॉमनवेल्थ की पोल-खोल से आप पूरी तरह से वाकिफ होंगे लेकिन रफ्तार के इस रोमांच को बनने में ऐसा कुछ नहीं देखने को नहीं मिलेगा क्योंकि यहां पर नौकरशाही और और राजनीति जैसे काले चेहरे नहीं है, कलमाड़ी और भ्रष्ट अफसर नहीं है लिहाजा जहां जितने पैसे लगने हैं उतने ही लगेंगे। इंडियन ग्रांप्री का सारा मैनेजमेंट प्राइवेट कंपनियों के हाथो में है।

आपका
विवेक मिश्रा