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Friday, January 14, 2011

गणतंत्र के 61 साल...



26 जनवरी 2011 को हम अपना 61 वां गणतंत्र मना रहे है । 26 जनवरी 1950को हमारे देश का संविधान को महान देशभक्तों ने मिलकर बनाया और इसी दिन देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र पसाद ने भारतीय गणतंत्र के ऐतिहासिक जन्‍म की घो‍षणा की । 26 जनवरी 1950 को भारत एक पूर्ण गणतंत्र राष्ट्र के रुप में विकसित हुआ । भारत 15 अगस्‍त 1947 को एक स्‍वतंत्र राष्‍ट्र बना, इसने स्‍वतंत्रता की सच्‍ची भावना का आनन्‍द 26 जनवरी 1950 को उठाया जब भारतीय संविधान प्रभावी हुआ। इस दौरान देश ने बहुत तरक्की की, औद्योगिक क्रांति से लेकर टेक्नोलॉजी में क्रांति बहुत कुछ । देश की तरक्की से आज हम अपने आप को संयुक्त राष्ट्र संघ में शामिल देशों की कतार में खड़े है । अमेरिका, चीन, रुस, जापान जैसी महाशक्तियां भारत को अपने साथ लेकर चल रही है । लेकिन इन सब के पीछे हम उन महान सपूतों, देशभक्तों को कैसे भूल सकते है जिनकी बदौलत हम आज आजादी की खुली हवा में सांस ले रहे है । सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल, लाला लाजपत राय जैसे महान क्रांतिकारियों के बलिदान से हमे आजादी मिली ।
देश को आजादी दिलाने में सरदार भगत सिंह का अहम योगदान है । भगत सिंह में जो देश प्रेम का जज्बा था वो बहुत कम देखने को मिलता है । भगत सिंह जलियाबाग हत्य़ा कांड से प्रेरित होकर क्रांतिकारी बने । महज 24 साल की अवस्था में भगत सिंह हसंते - हसंते फांसी के फंदे को चूम लिए । 23 मार्च 1931 भगत सिंह की शहादत का दिन कोई कैसे भूल सकता है । भगत सिंह ने राजगुरू के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1926 लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अधिकारी जेपी सांडर्स को मारा था। इस कार्रवाई में भगत सिंह का साथ महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने दिया था । क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने नई दिल्ली की सेंट्रल एसेंबली के सभागार में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज़ सरकार को जगाने के लिए बम और पर्चे फेंके थे। बम फेंकने के बाद वहीं पर दोनों ने अपनी गिरफ्तारी भी दी। भगत सिंह की गिरफ्तारी के बाद गांधी जी ने भगत सिंह को बचाने के लिए पुरजोर कोशिश भी की थी । लेकिन भारत मां के सपूत भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने फांसी के फंदे को चूमना बेहतर समझा । आज भगत सिंह नहीं है लेकिन वो हर भारतीय के जेहन में अभी भी जिंदा है क्योंकि आज हम भारतीय भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारियों की वजह से आजाद हैं ।
सरदार भगत सिंह के सबसे महत्वपूर्ण साथी चंद्रशेखर आजाद थे । 23 जुलाई 1906 को जन्मे चंद्रशेखर आजाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अत्यंत सम्मानित और लोकप्रिय क्रांतिकारी स्वातंत्रता सेनानी थे । असहयोग आंदोलन समाप्‍त होने के बाद चन्द्रशेखर आजाद की विचारधारा बदली और वो आजादी की जंग में कूद गए । स्वतंत्रता संग्राम में कूदने के बाद आजाद ने काकोरी कांड और सांडर्स हत्या जैसे महान कारनामों को अंजाम दिया । 1919 में जलियावाला बाग हत्याकांड ने चंद्रशेखर को काफी विचलित किया था । 27 फरवीर 1931 को भारतीय क्रांतिकारी इतिहास का प्रलयकांरी दिन था पण्डित चन्द्रशेखर आजाद अल्फ्रेड पार्क में सुखदेव,सुरेन्द्र नाथ पांडे एवं श्री यशपाल के साथ चर्चा में व्यस्त थे। तभी किसी मुखविर की सूचना पर पुलिस ने उन्हें घेर लिया। और वो अंग्रेजों के हाथो लड़ते-लड़ते आखिरी गोली अपने आपको मार कर शहीद हो गए ।
सन् 1928 पंजाब केसरी के नाम से मशहूर लाला लाजपत राय की शहादत के लिए याद किया जाता है । देश के नाम अपने आप को समर्पित करने वाले क्रांतिकारियों में लाला लाजपत राय का भी अहम योगदान रहा है । लाला लाजपत राय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गरम दल के अगुवा थे । लाला लाजपत राय ने पंजाब नैशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कम्पनी की भी स्थापना की। बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल के साथ मिलकर लाला लाजपत राय ने सबसे पहले पूर्ण स्वराज की मांग उठाई, इन तीनों की तिकड़ी को लाल,पाल,बाल के नाम से जाना जाता था । सन् 1928 में महान क्रांतिकारी लाला लाजपत राय ने साइमन कमीशन के विरुद्ध विरोध - प्रदर्शन करते हुए सांडर्स के हाथो लाठी चार्च में घायल होकर शरीर त्यागा।
देश को आजादी दिलाने में नेताजी सुभाष चंद्र बोस को कोई कैसे भूल सकता है । तुम मुझे खुन दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा और जय हिंद का नारा देने वाले महान क्रांतिकारी सुभाष चंद्र बोस तो देश के बाहर अपनी एक सेना तैयार कर ली थी । द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेजो से लड़ने के लिए सुभाष चंद्र बोस ने जापान में आजाद हिंद फौज का गठन किया था । जिसका मुख्य मकसद अंग्रेजी साम्राज्य को नेस्तेनाबूत करना था । भेष बदलकर अंग्रेजों को चकमा देना सुभाष चंद्र बोस की आदत थी । नेताजी के देश सेवा का सफर कोलकाता के स्वतंत्रता सेनानी देशबंधु चितरंजन दास की वजह से हुआ, देशबंधु से प्रेरित होकर नेताजी इंग्लैंड से भारत वापस आए । अपने सार्वजनिक जीवन में सुभाषबाबू को कुल ग्यारह बार कारावास हुआ। सबसे पहले उन्हें 1921 में 6 महिनों का कारावास हुआ। 1938 में कांग्रेस के 41 वें वार्षिक अधिवेशन में सुभाष चंद्र बोस को अध्यक्षता मिली थी । देश के लिए सुभाष चंद्र बोस के योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता ।
लौह पुरुष के नाम से विख्यात सरदार बल्लभ भाई पटेल का भी नाम उन स्वतंत्रता सेनानियों की फेहरिस्त में है जो देश के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर दिए । आजादी से पहले सरदार बल्लभ भाई पटेल की क्रांति ने अंग्रेजों को नाको चने चबवा दिए थे । स्वतन्त्रता आन्दोलन में सरदार पटेल का सबसे पहला और बडा योगदान खेडा संघर्ष में हुआ। बारडोली कस्बे में सशक्त सत्याग्रह करने के लिये ही उन्हे पहले बारडोली का सरदार औअर बाद में केवल सरदार कहा जाने लगा। आजादी के बाद पटेल जी ने प्रधानमंत्री पद की दौड से अपने को दूर रखा और इसके लिये नेहरू का समर्थन किया। उन्हे उपप्रधान मंत्री एवं गृह मंत्री का कार्य सौंपा गया।
देश की विडंबना ये है कि हम इन सच्चे देश भक्तों को कभी-कभार ही याद करते हैं । हम ये भूल जाते है कि आज हम इन्ही महान क्रांतिकारियों की बदौलत ही आजाद है । देश के इन सपूतों के योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता ।

आपका
विवेक मिश्रा