Friday, September 19, 2008
आतंकवाद में समाज की भूमिका ......
ब्लास्ट होता है लोग मरते है फ़िर स्थिति सामान्य होती है ...समय के साथ लोगो की दिनचर्या भी सामान्य हो जाती है......कुछ लोगो को पुरस्कार मिलता है तो कुछ लोगो को मुवावजा ...क्या इसके पीछे कोई यह सोचता है कि उन लोगो का क्या होता है जो इसके शिकार होते है ......क्या इन सब के बाद सुरक्षा व्यवस्था सुधर जाती है ? नही वही ढाक के तीन पात वाली स्थिति चलती है .....आख़िर पुलिस क्या - क्या करे किस -किस को खंगाले .....जब भी कोई इनकाउंटर होता है तो कुछ समाज के ठेकेदार या फ़िर कहा जाय कि ये सामाजिक लोग ये जरुर कहते फिरेंगे कि ये इनकाउंटर पूर्व नियोजित था .....या कुछ मानवाधिकारी बंधू कूद के आ जायेंगे कहेंगे कि यह मानवाधिकार के खिलाफ है .......आख़िर में हम ये सवाल करते है कि ये सामाजिक लोग और मानवाधिकारी लोग उस समय कहा जाते है जब ब्लास्ट होता है ? पुलिस तो जो भी कर रही है कही न कही से जनता कि और देश की भलाई ही कर रही है .....अभी हाल में एक फ़िल्म आई थी वेडनेसडे जिसमे नसरुद्दीन शाह ने एक आम आदमी कि भूमिका निभाई थी ....वो आम आदमी मुंबई ब्लास्ट से परेशान था .....उसने आतंकवादियों के खिलाफ वो कदम उठाया जो आतंकवादी देश के खिलाफ उठाते है .....अगर आज देश का हर आम आदमी इस फ़िल्म के हीरो कि भूमिका निभाने लगे तो ......देश कि सुरक्षा एजंसियों का क्या होगा ?
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