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Friday, February 18, 2011

रिक्शे की सवारी, बाजारवाद या फिर कुछ और...



विश्व कप के महासंग्राम में करोड़ो अरबों रुपया पानी की तरह बह रहा है, कहीं पर मैदान के बाहर जमकर पैसा खर्च हो रहा है तो कहीं मैदान के बाहर । क्रिकेट के चाहने वाले तो अपनी नजरे टीवी पर गड़ाए बैठे है तो कुछ स्टेडियम में मैच का नजारा लेने के लिए टिकट कटवा रहे हैं, इन प्रशंसको पर विज्ञापनकर्ताओं की नजर लगी हुई है लिहाजा कोई चूक ना हो इसलिए हर जगह विज्ञापन देखने को मिल रहे है।

गेंद और बल्ले की इस महाजंग में दौलत शोहरत और मेहनत तीनों अपने शबाब पर है, लेकिन इस बीच में बंगबंधु स्टेडियम में वर्ल्ड कप के उद्घाटन समारोह में सभी 14 देशों के कप्तान रिक्शे पर नजर आए ये महज इत्तफाक हो सकता है, लेकिन हमारी नजर में ये इत्तफाक ही नही बल्कि कुछ और है। क्रिकेट के ये नामचीन चेहरे जिनके एक कंधे पर टीम का भार है तो दूसरे कंधे पर करोड़ो रुपए के विज्ञापन का बोझ वो रिक्शे पर बैठकर उद्घाटन समारोह में शिरकत करने आए इसके पीछे मामला कुछ औऱ ही है।

भारतीय उपमहाद्वीप में रिक्शे की सवारी कोई नई बात नहीं है, लेकिन बंगबंधु स्टेडियम में इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और दूसरे देशों के कप्तानों का हाल देखने लायक था। ऑस्ट्रेलियाई कप्तान रिकी पॉन्टिंग असहज महसूस कर रहे थे तो दक्षिण अफ्रीकी कप्तान ग्रेम स्मिथ हैरान थे, इस बीच भारतीय कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी और बांग्लादेशी कप्तान साकिब अल हसन मंद-मंद मुस्करा रहे थे। खैर इन बातों को छोड़िए मुद्दे की बात ये है कि कप्तान धोनी कितने दिनों बाद रिक्शे पर नजर आए हैं खुद कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को भी नहीं पता। मंहगी गाड़ियों से चलने वाले ये कप्तान रिक्शे पर बैठकर स्टेड़ियम में पहुंचे इसके पीछे उन चेहरों का हाथ है जो गांवो शहर की गलियों में झुंडों में बैठकर वर्ल्ड कप का नजारा लेंगे, क्योंकि ये वही दर्शक है जो वर्ल्ड कप को चाव से देखते हैं, इसकी लोकप्रियता को बढ़ाते हैं और रिक्शे पर चलते भी हैं।

विश्व कप में करोड़ो अरबों के वारे न्यारे हो रहे हैं, 43 दिन के इस आयोजन में 3,915 करोड़ रुपये का कारोबार होने का मोटा अनुमान है। 1992 वर्ल्ड कप से ही किक्रेट में बिजनेस की भूमिका अहम हो गई है। वर्ष 2011 किक्रेट से होने वाली कमाई के लिहाज से हाल में सबसे अहम साल है। मनोरंजन इंडस्ट्री के आंकड़ों पर नजर डालें तो किक्रेट वर्ल्ड कप के दौरान कुल 3915 करोड़ रुपए का कारोबार होने की उम्मीद है जो अब तक आयोजित किसी भी आईसीसी टूर्नामेंट के लिए सबसे ज्यादा है। इस टूर्नामेंट में टीवी राइट्स और स्पॉन्सरशिप के जरिए आईसीसी 1500 करोड़ रुपए की कमाई करने वाली है। टिकट ब्रिकी के जरिए 100 करोड़ रुपए तो ट्रेवल एंड हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री 500 करोड़ रुपए का कारोबार करेगी। वहीं टीवी विज्ञापनों पर कुल 600 करोड़ रुपए खर्चे जाने की उम्मीद है। स्टेडियमों के नवीनीकरण पर कुल 1000 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं जबकि खिलाड़ियों के पुरस्कार और मैच फीस के लिए कुल 45 करोड़ रुपए खर्चे जाएंगे। ग्रांउड मार्केटिंग में 120 करोड़ रुपए का कारोबार होना है और किकेट मर्केंडाइज कुल 50 करोड़ की कमाई की उम्मीद है। दुनिया भर में किक्रेट पर निगरानी रखने वाली सर्वोच्च इकाई आईसीसी की कमाई का मुख्य जरिया प्रसारण अधिकार और स्पॉन्सरशिप है। 10 सेकेंड के विज्ञापन के लिए 3.5 लाख रुपये: वर्ल्ड कप जैसे बड़े टूर्नामेंट का फायदा उठाने का मौका कोई भी कंपनी चूकना नहीं चाहती। इंडस्ट्री के जानकारों का मानना है कि जहां 2010 में कंपनियों ने अपने मार्केटिंग बजट का 6-8 फीसदी हिस्सा किेट पर खर्च किया था। वहीं 2011 में यह आंकड़ा बढ़कर 10-12 फीसदी होने की उम्मीद है।

चलिए ये तो हो गई खर्चे की बात, जेंटलमैन के इस गेम में अब कुछ भी जेन्टल नहीं रह गया है। सब कुछ बाजारवाद पर निर्भर हो गया है। भारत की भोली-भाली जनता को बरगलाना कोई इन क्रिकेट के सितारों से सीखे, कप्तान धोनी जो कोल्ड ड्रिंक पीते हैं वो जनता पीने के लिए बेकरार रहती है, आम जनता के पसंदीदा खिलाड़ी जो ब्रांड पहनते है उसे जनता पहनना पसंद करती है और क्रिकेट स्टार जो मोबाईल फोन प्रयोग में लाते हैं उसे उसके फैन्स जरुर खरीदते है, तो ऐसे में क्या रिक्शे से बंगु-बंगु स्टेडियम में पहुंचना आम जनता को लुभाना है या फिर वाकई में ये कप्तान अपनी संस्कृति को प्रदर्शित करना चाह रहे है। वैसे भी कप्तान धोनी की कमाई सालाना 50 करोड़ रुपए है जो किसी भी क्रिकेट स्टार की कमाई से ज्यादा है।


विवेक मिश्रा
खेल पत्रकार, इंडिया न्यूज

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