दोस्तों ...लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को सरकार की टेढी नजर लगनी शुरू हो गई है ........सरकार की नई नीति में अब न्यूज़ चैनल वालो को किसी प्रसारण के पहले उनकी अनुमति लेनी पड़ेगी । कोई ख़बर दिखाने के पहले सम्बंधित जिलाधिकारी को दिखाना पड़ेगा फ़िर उसको दिखाना पड़ेगा । सरकारी तंत्र के लचर रवैये को देखते हुए किसी ख़बर को तुंरत दिखा पाना .....आसमान से तारे तोड़ लाने के बराबर होगा । क्या ये सही है ?????जायज है ???
नही ।
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में संवैधानिक रूप से ये अधिकार मिला हुआ है की हर कोई अपनी बात कह सकता है । अनुच्छेद १९ (1) इस बात का गवाह है कि भारत का हर एक नागरिक अपनी बात को बेखौफ होकर व्यक्त कर सकता है । लेकिन मुंबई हमलो के बाद प्रसारण मंत्रालय को लगा कि प्राइवेट न्यूज़ चैनल टी आर पी को लेकर कुछ ज्यादा ही दिखा रहे है । यहाँ हम ये भी बता देना चाहते है कि ख़ुद सरकारी मिडिया भी मुंबई हमले की कवरेज़ कर रही थी ।
कई मामलो में खबरिया चैनल बहुत ही बढ़िया है, जैसे एन एस जी के जवानो की जांबाजी को दिखाना या फ़िर हमलो की हर बारीक़ से बारीक़ जानकारिया दिखाना ।इसी बीच में आंतकवादी टीवी देख कर जवानो के हर कदम को जानने लगे तो यही न्यूज़ चैनल लाइव प्रसारण बंद कर दिए ।
चाहे कड़ी धुप हो या मुसलाधार बारिस हमारे पत्रकार बंधू कैमरे की नजर से सब कुछ हम लोगो के बीच पहुचाते है । हाँ ये सही है की बाजारवादी युग में टी आर पी के मायने थोड़ा बदल गए है फ़िर भी अभी जो स्थिति है वो सरकारी तंत्र से बहुत ही बढ़िया है ।
हालाँकि हमारे संपादक लोग इसका विरोध कर रहे है और प्रधानमंत्री जी से भी मिलकर इस बारे में बात करेंगे ....देखते है क्या होता है ।
Wednesday, January 14, 2009
Saturday, October 25, 2008
पलायन करते पुरबिया .....
आखिरकार क्यों पुरबिया लोग पलायन करते है ......कारण अशिक्षा , बेरोजगारी , गरीबी और बढ़ते अपराध है । इनके पीछे क्या कोई यह जनता है की कारण कौन है ????? जवाब आता है वही राजनीती की अड़ंगेबाजी। बिहार में कभी लालू की कभी नीतिश की ..... उत्तर प्रदेश में माया मुलायम भी कम नही है । कहने को तो इन प्रदेशो में खनिज संसाधनों की कमी नही है लेकिन रोजगार के तो जैसे लाले पड़ गए है ।
उद्योग धंधो की कमी के चलते ये यू पी और बिहार के लोग महानगरो की ओर रुख करते है और वहां जगह भी बना लेते है । इसमे कोई संदेह नही है कि ये पुरबिया मेहनती और इमानदार है। लेकिन ये कम अपने यहाँ भी किया जा सकता है । इसके लिए जरुरत है सरकार क खिलाफ एक आन्दोलन कि एक क्रांति कि ।
क्यो ये पुरबिया मजबूर है पलायन के लिए ?
अब जवाब ये निकल के आता है यहाँ कि सरकार जो विगत पच्चीस सालो से यहाँ राज कर रही है । क्यों महाराष्ट्र और अन्य महानगरो में उत्तर प्रदेश और बिहार कि अपेक्षा रोजगार अधिक है । देश के संसद में सबसे ज्यादा प्रतिनिधित्व ये पुरबिया ही करते है तो अपने प्रदेश में विकाश के नाम पे इनकी संख्या कम क्यो हो जाती है ?
हमारा ये मानना है की राज ठाकरे को दोष देने के बजाय ये पुरबिया अपने नेता लालू , नीतिश , मायावती , और मुलायम को दोष दे तो ज्यादा ठीक होगा । ये वो नेता है जिनके कारण ये पुरबिया पलायनवादी रुख अख्तियार करते है ।
कहते है राजनीती में सब जायज है तो राज ठाकरे की राजनीती भी एक तरीके से जायज है । जब ये उत्तर प्रदेश और बिहार के नेता अप्रत्य्क्ष्य रूप से प्रदेश को खोखला कर रहे है तो राज ठाकरे प्रत्यक्ष्य रूप से अपने वोट बैंक को मजबूत कर रहे है ।
देखना यह है की ये वोट की राजनीती कब तक चलती रहेगी ? कब तक हम मासूम जनता इन राजनीती के ठेकेदारों की बलि चढ़ते रहेंगे? ? ?
उद्योग धंधो की कमी के चलते ये यू पी और बिहार के लोग महानगरो की ओर रुख करते है और वहां जगह भी बना लेते है । इसमे कोई संदेह नही है कि ये पुरबिया मेहनती और इमानदार है। लेकिन ये कम अपने यहाँ भी किया जा सकता है । इसके लिए जरुरत है सरकार क खिलाफ एक आन्दोलन कि एक क्रांति कि ।
क्यो ये पुरबिया मजबूर है पलायन के लिए ?
अब जवाब ये निकल के आता है यहाँ कि सरकार जो विगत पच्चीस सालो से यहाँ राज कर रही है । क्यों महाराष्ट्र और अन्य महानगरो में उत्तर प्रदेश और बिहार कि अपेक्षा रोजगार अधिक है । देश के संसद में सबसे ज्यादा प्रतिनिधित्व ये पुरबिया ही करते है तो अपने प्रदेश में विकाश के नाम पे इनकी संख्या कम क्यो हो जाती है ?
हमारा ये मानना है की राज ठाकरे को दोष देने के बजाय ये पुरबिया अपने नेता लालू , नीतिश , मायावती , और मुलायम को दोष दे तो ज्यादा ठीक होगा । ये वो नेता है जिनके कारण ये पुरबिया पलायनवादी रुख अख्तियार करते है ।
कहते है राजनीती में सब जायज है तो राज ठाकरे की राजनीती भी एक तरीके से जायज है । जब ये उत्तर प्रदेश और बिहार के नेता अप्रत्य्क्ष्य रूप से प्रदेश को खोखला कर रहे है तो राज ठाकरे प्रत्यक्ष्य रूप से अपने वोट बैंक को मजबूत कर रहे है ।
देखना यह है की ये वोट की राजनीती कब तक चलती रहेगी ? कब तक हम मासूम जनता इन राजनीती के ठेकेदारों की बलि चढ़ते रहेंगे? ? ?
Wednesday, October 15, 2008
माया सोनिया के बीच जंग में .....
माया सरकार के बारे में कहा जाता है कि ...माया अपने शासन काल में दोस्तों पे ज्यादा ही ध्यान रखती है और दुश्मनों पे पैनी नजर रखती है । अभी ताजा - ताजा विवाद उभर के सामने आया है वो रायबरेली का है जहाँ पर सोनिया सरकार कि एक महत्वाकान्छी योजना रेल कोच फैक्ट्री शुरू होने वाली थी । १४ अक्तूबर को सोनिया शिलान्यास भी करने वाली थी बाकिर माया को ये सब मंजूर नही था ।
बात कुछ भी हो लेकिन इस माया - सोनिया के बीच विवाद में पिस रहे है आम लोगो के सपने । वो सब्जबाग सोनिया ने दिखाए थे चूर चूर हो गए । ग्रामीणों कि उम्मीदे कि ये थी कि फैक्ट्री लगेगी रोजगार मिलेगा , उन्हें क्या पता था कि राजनीती के आगे ये सब नही चलता ।
रेल कोच फैक्ट्री के बंद होने से वह के लोगो में काफी आक्रोश है , खून खराबे किसी भी स्थिति बन गई थी, शायद रायबरेली दूसरा सिंगुर भी बन जाता । हाँ एक बात और कुछ भी घटना होती है तो आरोप प्रत्यारोप का दौर जरुर चलता है । माया का कहना है किसी अगर सोनिया को उत्तर प्रदेश में विकास करना है तो तमाम जगह है जहा वो विकास कर सकती है रायबरेली के पीछे क्यो पड़ी है ।
इसका सबसे ज्यादा प्रभाव गरीब आदमी पे ही पड़ता है । फिलहाल गलती किसी कि भी हो चोट तो आम आदमी को ही लगती है । पेट तो आम आदमी का ही जलता है भाई ।
बात कुछ भी हो लेकिन इस माया - सोनिया के बीच विवाद में पिस रहे है आम लोगो के सपने । वो सब्जबाग सोनिया ने दिखाए थे चूर चूर हो गए । ग्रामीणों कि उम्मीदे कि ये थी कि फैक्ट्री लगेगी रोजगार मिलेगा , उन्हें क्या पता था कि राजनीती के आगे ये सब नही चलता ।
रेल कोच फैक्ट्री के बंद होने से वह के लोगो में काफी आक्रोश है , खून खराबे किसी भी स्थिति बन गई थी, शायद रायबरेली दूसरा सिंगुर भी बन जाता । हाँ एक बात और कुछ भी घटना होती है तो आरोप प्रत्यारोप का दौर जरुर चलता है । माया का कहना है किसी अगर सोनिया को उत्तर प्रदेश में विकास करना है तो तमाम जगह है जहा वो विकास कर सकती है रायबरेली के पीछे क्यो पड़ी है ।
इसका सबसे ज्यादा प्रभाव गरीब आदमी पे ही पड़ता है । फिलहाल गलती किसी कि भी हो चोट तो आम आदमी को ही लगती है । पेट तो आम आदमी का ही जलता है भाई ।
Tuesday, September 23, 2008
क्या मै महफूज हूँ ?????...
बम ब्लास्ट की ख़बर को तवज्जो देना हम पत्रकारों का फर्ज होता है .....लेकिन जब आम आदमी की सोचते है तो लगता है की अभी बहुत कुछ बाकी है..कही कोशी तो कही सिंगुर या कुछ और ??? .....पहले तो नही लेकिन अब जब भी घर से निकालता हूँ ...तो मन में एक अनजाना सा डर बना रहता है की कही ब्लास्ट न हो जाए ...बस में मेट्रो में या फ़िर कही भी हर उस शक्श को संदेह की नजरो से देखता हूँ जिसके हाथ में कोई बैग होता है ...... लगातार हो रही आतंकवादी गतिविधियों से हर आदमी अपने आप को डरा हुआ महसूस कर रहा है ..लेकिन लोगो कि दिनचर्या वैसे ही चल रही है जैसे पहले चल रही थी ...क्योंकि हम भारतीय है ,,,हमें कोई डिगा नही सकता ........लेकिन आम आदमी के लिए बदला है तो मन में एक डर .....
दोस्तों मै जिंदगी में कभी भी किसी से नही डरा हूँ ..... लेकिन किसी ब्लास्ट का शिकार हो के बे मौत नही मरना चाहता हूँ .... भगवान से यही दुआ है कि अगर कभी जान जाए तो देश की सेवा करते हुए जाए बस........
क्या खुफिया एजंसी इतनी निकम्मी हो गई है कि आम आदमी घर से निकलने के बाद वापस घर पहुच पाए ??????क्या ये मुमकिन है ????
दोस्तों मै जिंदगी में कभी भी किसी से नही डरा हूँ ..... लेकिन किसी ब्लास्ट का शिकार हो के बे मौत नही मरना चाहता हूँ .... भगवान से यही दुआ है कि अगर कभी जान जाए तो देश की सेवा करते हुए जाए बस........
क्या खुफिया एजंसी इतनी निकम्मी हो गई है कि आम आदमी घर से निकलने के बाद वापस घर पहुच पाए ??????क्या ये मुमकिन है ????
Saturday, September 20, 2008
जांबाजी कही बिकती नही .......
जोश, जज्बा और देशभक्ति कही से खरीदी नही जाती .....ये पैदा होती है अपने देश की मिटटी के जुडाव से .....ये पैदा होतो है अपने परिवार के संस्कारो से ......
दिल्ली पुलिस के जांबाज पुलिस इंस्पेक्टर शहीद मोहन चंद शर्मा को शत - शत नमन....
जनवरी २००८ को राष्ट्रपति द्वारा मैडल लेते समय देखने वालो में कोई यह नही सोचा होगा की यह उनके लिए आखिरी मैडल होगा ....लेकिन आज यह सही है .....
कारगिल हो या फ़िर कोई और जंग या कोई पुलिसिया मुठभेड़ हर जगह ये आतंकवादी या क्रिमिनल मरते है तो अखबार , न्यूज़ चैनल अपनी भड़ास निकालने पहुच जाते है ...स्टोरी बानाने का सिलसिला चल पड़ता है .....लोग भीड़ बढाते है नारे बाजी करते है ..स्थानीय भी राजनीतिक रोटी सेकने पहुच जाते है .....
आज एक पुलिस का जवान शहीद हुआ है ....खबरों में इनकी शहादत को तव्वजो दी गई है लेकिन शायद इससे ज्यादा तव्वजो दी गई है उस ख़बर को जो मुठभेड़ से जुदा था ...हर पत्रकार बंधू अपने अखबार या चैनल के लिए सबसे पहले ब्रेकिंग करना चाहता था ....शायद नौकरी के लिए यह जरुरी भी था........
निवेदन है इन पत्रकार भाइयो से की इस जांबाज इंस्पेक्टर के परिवार की स्थिति के बारे में भी कुछ दिखाए ....
दिल्ली पुलिस के जांबाज पुलिस इंस्पेक्टर शहीद मोहन चंद शर्मा को शत - शत नमन....
जनवरी २००८ को राष्ट्रपति द्वारा मैडल लेते समय देखने वालो में कोई यह नही सोचा होगा की यह उनके लिए आखिरी मैडल होगा ....लेकिन आज यह सही है .....
कारगिल हो या फ़िर कोई और जंग या कोई पुलिसिया मुठभेड़ हर जगह ये आतंकवादी या क्रिमिनल मरते है तो अखबार , न्यूज़ चैनल अपनी भड़ास निकालने पहुच जाते है ...स्टोरी बानाने का सिलसिला चल पड़ता है .....लोग भीड़ बढाते है नारे बाजी करते है ..स्थानीय भी राजनीतिक रोटी सेकने पहुच जाते है .....
आज एक पुलिस का जवान शहीद हुआ है ....खबरों में इनकी शहादत को तव्वजो दी गई है लेकिन शायद इससे ज्यादा तव्वजो दी गई है उस ख़बर को जो मुठभेड़ से जुदा था ...हर पत्रकार बंधू अपने अखबार या चैनल के लिए सबसे पहले ब्रेकिंग करना चाहता था ....शायद नौकरी के लिए यह जरुरी भी था........
निवेदन है इन पत्रकार भाइयो से की इस जांबाज इंस्पेक्टर के परिवार की स्थिति के बारे में भी कुछ दिखाए ....
Friday, September 19, 2008
आतंकवाद में समाज की भूमिका ......
ब्लास्ट होता है लोग मरते है फ़िर स्थिति सामान्य होती है ...समय के साथ लोगो की दिनचर्या भी सामान्य हो जाती है......कुछ लोगो को पुरस्कार मिलता है तो कुछ लोगो को मुवावजा ...क्या इसके पीछे कोई यह सोचता है कि उन लोगो का क्या होता है जो इसके शिकार होते है ......क्या इन सब के बाद सुरक्षा व्यवस्था सुधर जाती है ? नही वही ढाक के तीन पात वाली स्थिति चलती है .....आख़िर पुलिस क्या - क्या करे किस -किस को खंगाले .....जब भी कोई इनकाउंटर होता है तो कुछ समाज के ठेकेदार या फ़िर कहा जाय कि ये सामाजिक लोग ये जरुर कहते फिरेंगे कि ये इनकाउंटर पूर्व नियोजित था .....या कुछ मानवाधिकारी बंधू कूद के आ जायेंगे कहेंगे कि यह मानवाधिकार के खिलाफ है .......आख़िर में हम ये सवाल करते है कि ये सामाजिक लोग और मानवाधिकारी लोग उस समय कहा जाते है जब ब्लास्ट होता है ? पुलिस तो जो भी कर रही है कही न कही से जनता कि और देश की भलाई ही कर रही है .....अभी हाल में एक फ़िल्म आई थी वेडनेसडे जिसमे नसरुद्दीन शाह ने एक आम आदमी कि भूमिका निभाई थी ....वो आम आदमी मुंबई ब्लास्ट से परेशान था .....उसने आतंकवादियों के खिलाफ वो कदम उठाया जो आतंकवादी देश के खिलाफ उठाते है .....अगर आज देश का हर आम आदमी इस फ़िल्म के हीरो कि भूमिका निभाने लगे तो ......देश कि सुरक्षा एजंसियों का क्या होगा ?
Tuesday, August 26, 2008
आफिस में लेट .........
सुबह ७ बजे का अलार्म घनघनाया और मन भन्ना गया ....आज किसी तरह आफिस जल्दी पहुचना था.... इसलिए कोसा बहुत अपने आप को लेकिन उठना था क्योकि जीवन के जद्दोजहद से जूझना था .....फ़िर क्या था ....गिरते पड़ते पंहुचा आफिस के गेट पर मोबाईल में देखा कि नौ बज के पच्चीस मिनट हो गए बस कर दिया हस्ताक्षर .....शुरू हो गई नौकरी .......स्टोरी आईडिया और खबरों का दौर.....इसी बीच कुछ मित्रो को हो गई देर कर दिए लेट और हो गए रजिस्टर में अनुपस्थित .....कट गई तनख्वाह .....मरते क्या न करते वाली हाल ने उन्हें अन्दर से झकझोर दिया ....बेचारे कुछ देर तो बिताये आफिस में ...लेकिन दे गया धैर्य जबाब वो भी कोसे किस्मत को ......और निकल पड़े घर की ओर .....सिलसिला निरंतर जारी रहेगा .......दोस्त अभी तो स्टोरी बाकी है.....ये कहानी किसी भी आफिस की हो सकती है इसलिए सावधान .................ध्यान दीजिये समय की पाबन्दी को ....
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